Bhojan Mantra: खाना खाने से पहले बाद में इन मंत्रो का जाप करे सेहत में होंगे सुधार
हिन्दू धर्म में मंत्रो का अधिक महत्त्व है और कहा जाता है की मंत्रो की शक्ति से असंभव को भी संभव किया जा सकता है। इसी क्रम आज हम लेकर आये है भोजन मंत्र। भोजन करते समय हम भगवान को नमस्कार करते है जिनके आशीर्वाद और कृपा से हमें भोजन मिला। पहले के समय में लोग भोजन करने से पहले मंत्र का जाप अनिवार्य नियम के तौर में करते है परन्तु समय के साथ आज इन मंत्रो के उपयोग लुप्त हो गए है। परन्तु आज भी कई विद्यालयों और छात्रावासों ने इस नियम को जिन्दा रखा है। भोजन मंत्र की परंपरा को फिरसे जागृत करने के उद्देश्य से यह आर्टिकल लिख रहे है आशा करते है आप स्वयं भी नियमो को मानेंगे और अधिक से अधिक शेयर करेंगे।
भोजन मंत्र के रूप में भगवान से प्रार्थना और धन्यवाद करते है।
भोजन शुरू करने से पहले का मंत्र है -
"सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यम करवावहै।
तेजस्विनावधितमस्तु मा विद्विषावहै।।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।"
अर्थात -
मंत्र का अर्थ है कि देवता हम सभी की रक्षा करें। हमारा साथ-साथ पालन करें। हम दोनों को साथ-साथ वीर्यवान और पराक्रमी बनाएं। हम जो कुछ भी हमारे गुरु से सिखाते है और हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से परस्पर द्वेष की भावना न रखे।
यह मंत्र गुरु और शिष्य दोनों द्वारा एक साथ बोला जाता है परन्तु मंत्र में कही भी गुरु और शिष्य का उच्चारण नहीं किया गया है वह सिर्फ साथ साथ ही कहा गया है अर्थात आप जिसके भी साथ भोजन करने बैठे उन सभी के कल्याण के लिए यह मंत्र है।
भोजन में शुद्धि अनिवार्य है इसलिए भोजन को साफ़ जगह पर बनाना चाहिए और जिस जगह पर आप भोजन करने बैठ रहे हो वह भी स्वच्छ होनी चाहिए। आप भोजन से पूर्व हाथ, पैर और मुह को धोकर बैठे। भोजन से पहले 2 बार आचमन करना चाहिए फिर 3 निवाले कुत्ते या गाय के नाम के निकल लेवे फिर भोजन की थाल के चारो और जल चढ़ाना चाहिये फिर हाथ जोड़कर भोजन मंत्र का उच्चारण कर भोजन प्रारंभ करना चाहियें।
जो 3 निवाले आप भोजन से पूर्व निकाल रहे है उनके लिए भी विशेष मंत्र है हम इन निवालो को गाय या कुत्तो को देते है परन्तु वास्तव में इन 3 निवाली से सभी भगवानो को याद किया जाता है इन मंत्रों से पृथ्वी सहित चौदह भुवनों के सभी जीवों के स्वामी परमात्मा तृप्त हो जाते हैं। जिसे पढ़ने से भगवान प्रसन्न होते है और भोजन में हमे संतुष्टि मिलती है। यह मंत्र इस प्रकार है -
पहला निवाला निकालते समय जाप करे - ॐ भूपतये स्वाहा।
दूसरा निवाला निकालते समय जाप करे - ॐ भुवनपतये स्वाहा।
तीसरा निवाला निकालते समय जाप करे - ॐ भूतानां पतये स्वाहा।
आपको 2 बार आचमन करना होता है उस वक़्त आप गायत्री मंत्र का जाप करके आचमन कर सकते है मंत्र इस प्रकार है - "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।"
अब भोजन समाप्ति के बाद भोजन को पचाने व परमेश्वर को धन्यवाद करने हेतु इस मंत्र का जाप करे और स्थान से उठ सकते है -
अगस्त्यम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।
भोजन करना मनुष्य के जीवित रहने के लिए अनिवार्य है इसलिए हमेशा भोजन का सम्मान करे। जितनी आवश्यकता हो उतना ही भोजन थाली में लेवे जूठा बिलकुल न छोड़ें। विशेष भोजन करते है भोजन व अन्न का अपमान या निंदा ना करे।