क्या है वर्ण व्यवस्था? 4 वर्ण के विषय में श्रीमद् भगवद्गीता में क्या कहा गया है? पूरी जानकारी पढ़े विस्तार में
आप सभी लोग जातियों के बारे में तो जानते होंगे और सभी को अपनी अपनी जाती भी पता होगीं लेकिन क्या आप जानते है प्राचीन काल में इन जातियों को 4 प्रमुख वर्णों में बाटा गया था । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । (ब्राह्मण - ज्ञान व शिक्षा कार्य में लिप्त, लालच और मोह से दूर धर्म का प्रचार करने वाला, सदैव सात्विक जीवन जीने वाला, क्षत्रिय - राज कार्य में लिप्त व रक्षक, योद्धा के गुण रखने वाला बिना भेदभाव के सबका पालन करने वाला, राष्ट्र व धर्म की रक्षा करने वाला, वैश्य - व्यपार, कृषि व अन्य स्त्रोतों से धन अर्जन करने वाला और राज्य के पालन हेतु दान करने वाला, क्षुद्र - सेवा धर्म को अपनाकार, सेवा कर्म करने वाला) उस समय इन वर्णों की व्यवस्था मनुष्य के गुणों और कर्मो के अनुसार की गईं थी लेकिन आज यह व्यवस्था सिर्फ जन्म के अनुसार रह गईं है, समय के अनुसार मनुष्यों में परिवर्तन किया है कई बार राजनीती में अपना अलग समाज और अपना अलग वोट बैंक स्थापित करने के लिए भी अशिक्षित लोगो को गुमराह भी किया गया परन्तु वास्तव में देखा जाए तो वर्ण व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ गुणों और कर्मो के अनुसार ही बाटा गया था । जिसका उल्लेख भगवान् श्री कृष्ण में श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय 4 के तेरहवे श्लोक में किया है वह इस प्रकार है ।
श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 13
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।
अर्थ: ।।4.13।। गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है। यद्यपि मैं उसका कर्ता हूँ, तथापि तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी जानो।।
इस श्लोक को ध्यान से समझा जाए तो भगवान् श्री कृष्ण में गुण और कर्मो के आधार पर वर्ण व्यवस्था का निर्धारण करने की बात कही है अर्थात अगर कोई क्षुद्र परिवार में जन्मा है लेकिन उसके कर्म क्षत्रिय या ब्राह्मणों जैसे है तो ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी होगा और अगर कोई ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी अज्ञानी है और धर्म के मार्ग पर नहीं चलता या मदिरापान या अन्य प्रकार के व्यसन करता है तो भी ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी नहीं होगा ।

अगर इसका उदहारण देखे तो देवी शबरी भील जाती में जन्म लेकर भी पूजनीय हो गईं और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् श्री राम में उनके घर जाकर उनकें हाथो के जूठे बेर खाएं लेकिन रावन ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर महाज्ञानी होने के बावजूद भी असुरी कर्म करने के कारण भगवान् के हाथो दंड का अधिकारी हुआ था । आज के युग में अगर उसका उदारहण देखे तो महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाले महान भील योद्दा राणा पूंजा भी राणा कहलाये । महाभारत में अंगराज कर्ण का लालन पालन एक सूत के घर में होने पर उन्हें सूत कहा गया लेकिन उनके महान युद्ध कौशल के कारण उन्हें भी राजा बनाया गया और स्वयं भगवान् श्री कृष्ण की दृष्टी में भी वे एक महान सम्मानीय योद्धा कहलाये । (कर्ण देवी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे लेकिन इस बात का ज्ञान श्री कृष्ण, देवी कुंती, भीष्म पितामाह के अलावा किसीको नहीं था स्वयं कर्ण को भी इस बात का ज्ञान युद्ध से कुछ क्षणों पहले ही हुआ था लेकिन इन सबके बावजूद वे दानवीर अंगराज कर्ण के नाम से प्रसिद्ध थे ।)